स्वदेश दीपक की आत्मकथा मैंने माण्डू नहीं देखा का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
मैं अस्पताल से रिहा किया जा चुका था। हफ़्ते में एक बार पी.जी.आई. चंडीगढ़ जाना होता है। सलाहकार डॉक्टर प्रतापशरण के पास। अपने क्षेत्र के प्रकांड विद्वान, पटना से हैं, बोलते इतना हौले कि भ्रम हो जाये कि अज्ञेय के पास बैठे हैं। अपार सह्य सीमा। वह मांसाहारी तितली अब भी कमरे में आती है, लेकिन हर रोज़ नहीं। कुछ दिन बाद आयी तो कहा- भली लड़कियाँ अपना वादा पूरा करती हैं।
उसने कहा : आप बहुत शरारती हो गये हैं।
मैं : शरारती के साथ “तुम” लगता है, “आप” नहीं।
अस्पताल भी आती थी, जब बड़ी बहन ऊँघ रही होती थी और डॉक्टरों का लंच-ब्रेक होता था। उस समय अँधेरे और मृत्यु में एक क़दम की दूरी थी। अब उसे पश्चात्ताप होना शुरू हो गया था, क्योंकि उसका दंड बहुत बड़ा था मेरे दोष से।
- मैं रुक नहीं सकता।
- क्यों?
- क्योंकि मैं रुक नहीं सकता।
उस दिन कोई हौसला दिये बग़ैर वह चली गयी। मैं एक गड़बड़ाया रूपक बन गया। मुझे रोने से अब भी डर लगता है। जब अस्पताल से रिहा करेंगे तो उसके साथ पिकनिक पर जाऊँगा। सुन्दरवन जायेंगे।
वह बीमारी के शुरुआती दिन थे। अख़बार पढ़ना बन्द कर दिया। सुबह होते ही बड़े बरामदे में बैठता हूँ। गीता ने चाय का प्याला मेज़ पर रखा। गेट के पास से अख़बार उठाया। रसोई की तरफ़ बढ़ी। रुक गयी।
- तुम अख़बार क्यों नहीं पढ़ते ?
- समझ नहीं आता।
- पच्चीस साल अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे हो और अख़बार समझ नहीं आता! नानसेन्स। अच्छा, ट्राई करो, प्लीज़!
मैंने ट्राई करने के लिए अख़बार उठाया। पहले पेज पर देश के नेता का फ़ाेटो था। धीरे-धीरे उसकी जीभ बाहर निकली और वह छिपकली में बदलना शुरू हो गया। मैंने अपना रंगीन पाजामा उतारा और लुकमान अली में बदलना शुरू हो गया। लेकिन मेरे पास मेरा शागिर्द था ही नहीं। भूत-प्रेतों की कहानियाँ किसे सुनाता !
भाषाएँ मेरे दिमाग़ से बाहर जा रही थीं। लेकिन दूर संवेदना मेरे पास थी। दूसरे शहरों में रह रहे अपनों से बातचीत कर लेता था। लेकिन पास के लोगों से बातचीत के लिए तो अपनी भाषा चाहिए ही। एक बार उदयपुर रह रहे पीयूष दईया से पूछा :
- भगवान का क्या हालचाल है?
थोड़ा पॉज़ के बाद बोला :
- आपका क्या हालचाल है?
अब पीयूष से बात नहीं करूँगा। सच भाँप लेता है। अब किससे पूछँू कि क्या प्रभु से सौदेबाज़ी की जा सकती है? अगर मैं अपना शव बहुत गहरे गाड़ दूँ? अब सब मुझसे एक दुर्बोध भाषा में बातें करते। कुछ नहीं हुआ तुम्हें। भजनों के कैसेट सुनो। लम्बी साँस लो और दिल में ओउम बोलो। सुबह उठते ही चार गिलास पानी पीयो। ... कितने सरल इलाज होते हैं लोगों के पास !
आँगन में लगे छोटे पेड़ों के बीच चिड़ियाँ आती हैं। भूरे रंग की सात बहनें भी, सामूहिक स्वर में नाश्ते की माँग करती हैं।
हवा में कान कुतरने की आवाज़ आयी। एक बहुत बड़ा पक्षी फाइटर प्लेन की तरह डाइव कर रहा है। पंख हिल नहीं रहे। सबसे ऊँची टहनी पर बैठा। एक निरंकुश राजा की तरह गर्दन घुमा सारे आँगन में देखा।
चिड़िया और सात बहनें हाहाकर करती उड़ गयीं।
डोम पक्षी
माँ की बतायी बात याद आ गयी। जब ऐसे डरावने पंछी घर में आयें तो कोई न कोई मरता ज़रूर है।
मैं बहुत ख़ुश। कोई न कोई कौन हो सकता है मेरे सिवा। मृत्यु-इच्छा। डैथ विश हावी हो चुकी है मेरे ऊपर-तीन बार कोशिश करूँगा। लेकिन डोम पक्षी बचा लेगा, केवल अपने लिए।
मैं कहाँ जाना चाहता हूँ।
मैं दूसरी तरफ़ जाना चाहता हूँ। यह दूसरी तरफ़ शायद कहीं हो ही न। मेरा शरीर मेरे पछतावे का गवाह बन गया। लेकिन इन दिनों मायाविनी फ़्रेंच भाषा बोलती है।
उसे हिन्दी न समझ आती है, न बोल पाती है।
कोलरिज मेरे पास बैठ मेरा हालचाल बताता है :
वीव ए सरकल अराउंड हिम थ्राइस
एंड क्लोज युअर आइज़ विद होली ड्रैड।
बचपन में जब बहुत दुःख-तकलीफ़ में होता तो माँ हमेशा सीख देती :
- हौसला रख काका!
अब और कितना हौसला रखे तेरा काका : सालभर हो गया तेरे काके को बिस्तर से लगे।
और डोम पक्षी
मेरे न नहाने की वजह से रोज़ तकरार हो जाती।
- तुम नहाते क्यों नहीं?
- पानी की बाल्टी में डूब गया तो?
- कपड़े क्यों नहीं बदलते?
- यह फट गये तो पहनूँगा क्या?
- दस कुर्ते-पाजामे तुम्हारी अलमारी में रखे हैं। लेकिन बदलोगे नहीं। तुम लोगों को दिखाना चाहते हो कि पहनने को कपड़े नहीं देती।
स्वदेश चुप। पास बैठा बेटा सुकान्त चुप। आठवीं में पढ़ता है। भन्ना चुकी गीता ने कुर्ते के निचले सिरे पकड़े। अब फाड़ने के लिए झटका देगी।
सुकान्त : मम्मी। बिहेव यूअरसैल्फ।
वह तेज़ क़दमों से अन्दर चली गयी
सुकान्त ने पूछा : वाट इज़ रांग विद यू?
सालभर हो गया, पता नहीं चला कि मेरे साथ रांग क्या है। सुकान्त ट्यूशन पढ़ने चला गया।
परिवार के लोगों का पास बैठना लगभग बन्द। खाने की थाली सामने रख दी जाती है, खा लेता हूँ।
वज़न तेज़ी से कम होता। पहले ही इकहरा बदन था। कपड़े ढीले हुए। लटक गये। अचानक मिर्ज़ा याद आया। साहिबां की याद में गलियाँ-गलियाँ भटकता मिर्ज़ा। औरतें और बच्चे ताने देते हैं। अब कोई नहीं डरता इस पीले पड़ चुके योद्धा से। मुर्दों का बादशाह मिर्ज़ा।
लेकिन मैं अभागा न अपनी साहिबां का नाम ले सकता हूँ, न उसके शहर का। लोग मखौल उड़ायेंगे। दुख ने मेरा परिचय उससे कराया, फिर मेरा दोस्त बनाया। और मैं सिद्ध-दोष करार दे दिया गया। आनन्द और कोमलता के क्षण मर गये। लिखना बन्द। हवा में आग लग गयी थी। मेरे लिए अब न गीली होगी, न ठंडी। मुझे एक कानवाला कुत्ता याद आया। उसके शहर के गेस्टहाउस में मिलता था। जब जाग रहा होता हूँ, तो नींद आने लगती है। जब सोता तो नींद खुल जाती। क्या वह सदा तेजस्विनी है? हाँ, हैं। क्योंकि असाधारण सुन्दर औरतें कभी सपने नहीं देखतीं। इसलिए दुःख इन्हें छूकर भी नहीं निकलता। प्रत्येक माँ-जाये को पगला देती हैं।
सुकान्त रात को ट्यूशन से लौटा। हैरानी हुई। यह तो मेरे पास से गुज़रता तक नहीं। कमरे में क्यों ?
- मेरे साथ डी.आई.जी. की बेटी ट्यूशन पढ़ती है।
मैं उसे देखता रहा।
- कल उसे बताया, आप नहाते नहीं। शी टाक्ड टू हर फादर।
आगे क्या कहेगा।
- उसके फादर ने बताया कि अगर कोई न नहाये तो पुलिस पकड़ होती है। डी.आई.जी. ने कहा तो ठीक कहा। सीनियर अफसर सारे क़ानून जानते हैं। खड़ा हो गया-नहाऊँगा।
- सुबह नहा लेना।
- नो, आई वांट टू टेक बाथ नाउ।
पत्नी ने साफ़ कुर्ता-पाजामा निकाला, पूछा- मैं नहला दूँ? पीठ पर साबुन कैसे लगाओगे?
- डू यू थिंक आई कांट टेक ब्लडी बाथ माईसैल्फ?
वह हैरान। यह तेजस्वी गुस्सा कहाँ से लौट आया ? क्या ठीक ....नहाते हुए यह सोचकर ख़ुश हुआ कि हमारी पुलिस के पास कितने अच्छे-अच्छे कानून हैं! न नहायें तो पकड़ लें।
घर में दोपहर दो बजे तक अकेला। गीता काम पर। सुकान्त स्कूल। शिशिर के दिन आ गये।
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